जाट मरा तब जानिए जब तेहरवीं हो ले  कहावत के पीछे की कहानी

अपने एक प्राचीन कहावत तो सुनी ही होगी जाट मरा तब जानिए जब तेहरवीं हो ले इस कहावत को बॉलीवुड की 2 फिल्मों में भी प्रयोग किया गया है लेकिन क्या आप इस कहावत के पीछे की कहानी जानते है ?

आज हम आपको इसके पीछे की कहानी बताने वाले है क्यों ये कहावत प्रचलित हुई है

अजेय योद्धा भरतपुर नरेश महाराजा सूरजमल के बारे में तो आप सभी जानते ही होंगे जिन्होंने 80 से ज्यादा युद्ध लड़े और कभी नहीं हारे उनके द्वारा बनाया लोहागढ़ के किले को भी कभी कोई नहीं जीत पाया ,महाराजा सूरजमल ने मुगलों के दोनों लाल किलों आगरा और दिल्ली पर जीत हासिल की थी जिन्हें बड़े बड़े सुरमा भी नहीं जीत पाए थे महाराजा सूरजमल को जाटों का प्लेटो भी कहा जाता है पानीपत की तीसरी लड़ाई की हार ने  मराठा शक्ति को क्षीण करदिया था और राजपूतों ने भी उनका साथ पहले ही छोड़ दिया था पानीपत के तीसरी लड़ाई के बाद जब उन्होंने लड़ाई में बचे मराठो की मदद की और उनको वापस दक्षिण भेज दिया  उन्हें सकुशल वापस भेजने के बाद महाराजा सूरजमल ने अपने साम्राज्य के विस्तार करना आरंभ किया उन्होंने 12 जून 1761 को ही मुगलों की राजधानी कहे जाने वाले आगरा को जीत कर अपने राज में मिला लिया था इसके अलावा जिस क्षेत्र को वर्तमान हरियाणा कहते है वहां के बलूची शासक को शाषक मुसब्बी खान को हराकर हरियाणा को मुगल शासन ने मुक्त कर दिया था ,मुसब्बी खान को गिरफ्तार करके भरतपुर की जेल में डाल दिया और जीते हुए इलाके फरुखनगर को अपने पुत्र सवाई जवाहर सिंह को सौंप दिया ,ये वो समय था जब महाराजा सूरजमल की तूती हर तरफ बोल रही थी उस समय एक परम्परा थी जी जीते हुए इलाके पर हुकूमत करने के लिए मुगलों की इजाजत लेनी होती थी।

अब्दाली ने रुहेला नजीबुद्दौला को मुगलों का संरक्षक बना रखा था या एक तरीके से मुगल बादशाह को कैद कर रखा था सभी कानून नजीब के हाथ मे थे और वो मुगल बादशाह पर अपनी पूरी मनमानी चला रहा था ,महाराजा सूरजमल और रुहेला के बीच मे पहली से ही दुश्मनी थी जिस कारण नजीबुद्दौला ने महाराजा सूरजमल के प्रस्ताव को ठुकरा दिया ,इस बात से गुस्से महाराजा सूरजमल ने दिल्ली को घेर लिया और तब डरे हुए नजीबुद्दौला ने अपनी शाहयता के लिए अब्दाली के पास संदेशा भेज दिया ,नजीबुद्दौला की चाल थी कि जब तक अब्दाली ना आजाये जब तक सूरजमल के साथ लड़ाई न लड़ी जाए  इसलिए उसने किले के दरवाजे बंद करके अंदर छुप गया ।

महाराजा सूरजमल उसके इस कदम से उसकी चाल को समझ गए थे उन्होंने तुरंत लड़ाई का आदेश दे दिया और महाराजा सूरजमल की सेना बिजली के समान मुगलो पर टूट पड़ी जिसके जवाब में मुगल सेना ने भी गोली बारी शुरू करदी लेकिन मजराजा सूरजमल और उनकी सेना की मार मुगल सेना नहीं झेल पाई और उनके पैर उखड़ने लगे और महाराजा सूरजमल की जीत हुई और महाराजा सूरजमल ने दिल्ली पर विजय प्राप्त की और दिल्ली पर जाटों का कब्जा होगया ।

अगले दिन महाराजा सूरजमल को दिल्ली के नए शासक के रूप में सपथ लेनी थी ,अगले दिन सुबह को जब महाराजा सूरजमल जी 3 4 सैनिकों के साथ स्नान के लिए गए तो उन्हीं के एक गद्दार पुरोहित ने ये सूचना दुश्मन को देदी जिससे दुश्मनों ने घात लगाकर महाराजा सूरजमल पर धावा बोल दिया और 25 दिसंबर 1763 कि सुबह हिंडन नदी के किनारे महाराजा सूरजमल वीरगति को प्राप्त हुए और इस तरह इस महावीर के युग का अंत हुआ।

जब इस बात का पता दिल्ली के बादशाह शाहआलम को लगा तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ कि महाराजा सूरजमल जैसे पराक्रमी योद्धा वीरगति को प्राप्त होगये है तब उनके मुंह से ये बात निकली - जाट मारा तब जानिए जब तेहरवीं हो जाये
तब मुगल सेना के एक गुप्तचर ने महाराजा सूरजमल के शरीर का वस्त्र बादशाह को दिखाया तब जकर बादशाह को इस बात की संतुष्टि हुई कि महाराजा सूरजमल सही में वीरगति को प्राप्त हुए हैं।

महाराजा सूरजमल के शरीर मुगलों के हाथ ना लग जाये उससे पहले ही वहाँ के स्थानीय जाटों ने उनका अंतिम संस्कार नदी की किनारे कर दिया जहां उनकी समाधि स्तिथ है।

जब उनके वीरगति की सूचना भरतपुर पहुँची तो उनकी एक रानी के पास एक उनका टूटा हुआ दांत था उसी से महाराजा सूरजमल जी का अंतिम संस्कार राजकीय ढंग से मथुरा में किया गया ।