चांदनी चौक में लगी राजा नाहर सिंह की प्रतिमा ,युवा और बुजुर्गों ने दिखाया जोश जाम की बनी स्तिथि प्रशासन के उड़े होश

9 जनवरी को दिल्ली के चाँदनी चौक में राजा नाहर सिंह जी का बलिदान दिवस 
बडे जोर से मनाया गया । 161वा बलिदान दिवस राजा नाहर सिंह जी के समाधि स्थल पर
मनाया गया जहाँ पर उन्हें 9 जनवरी 1858 में फाँसी पर लटकाया गया था।




कार्यक्रम सुबह 8 बजे हवन के साथ शुरू हुआ वहां मौजूद लोगों ने हवन में आहुति देकर श्रद्धांजलि अर्पित की । उसके बाद वहां मौजूद सभी सम्मानित लोगों ने राजा नाहर सिंह के साथ साथ किसान मसीहा सर छोटूराम जी को भी उनके निर्वाण दिवस पर
श्रद्धा सुमन अर्पित करके दोनो महापुरुषों को श्रद्धांजलि दी ।


प्रतिमा रही आकर्षण का केंद्र 
जाट समाज द्वारा लगाई गई प्रतिमा आकर्षण का केंद्र रही 
आने वाले सभी लोगों ने प्रतिमा की तारीफ की और राजा नाहर सिंह जी को नमन किया।

राज परिवार के सदस्य भी रहें उपस्थित 

राजा नाहर सिंह जी को श्रद्धांजलि देने के लिए उनके पौत्र 
कुंवर नरवीर सिंह जी भी सुबह से ही मौजूद रहे और अपने
पूर्वजों की शहादत को नमन किया। 

मुरसान नरेश राजा महेंद्र प्रताप सिंह जी के भी पौत्र कुंवर चरत प्रताप सिंह जी भी दुपहर के समय मे कार्यक्रम में पहुँचे और राजा साहब को नमन किया और जाट सरदारी से एकता में रहने की अपील की। 

सफल आयोजन के लिए बधाई 

हर वर्ष की तरह इस बार भी राजा नाहर सिंह का बलिदान दिवस का कार्यक्रम सफल रहा पिछले 4 5 सालों का आंकलन करें तो सबसे अधिक संख्या में लोग मौजूद रहे, जगह की कमी के बावजूद करीब 400 500 के करीब लोग लोग मौजूद रहे।

बेहद सफल आयोजन के लिए हरपाल सिंह राणा जी और उनकी पूरी टीम को और पूरे जाट समाज को बधाई ।
हरपाल सिंह जी और उनकी टीम की जीतनी तारिफ की जाए शब्द कम है
। 



युवाओं ने भी लिया बढ़ चढ़ कर हिस्सा 





राजा नाहर सिंह को नमन करने के लिए पूरे भारत से जाट समाज से युवा अलग अलग राज्यों से काफी संख्या में मौजूद रहे ,नोयडा ,गाजियाबाद ,फरीदाबाद से लोग काफी संख्या में मौजूद रहे और मंच के माध्यम से अपनी बात भी समाज के सामने रखी ।
ईश्वर सिंह तेवतिया 

ईश्वर सिंह तेवतिया जी ने बखूबी निभाई व्यवस्थक की भूमिका
ईश्वर सिंह चांदनी चौक के ही निवाशी है और राजा नाहर सिंह जी के स्मारक की सबसे अधिक जिम्मेदारी इन्हीं के कंधे पर रहती और ये उस कार्य को बखूबी को अपने पूरे परिवार के साथ निभाते भी है। 


राजा नाहर सिंह के जीवन से जुड़ी कुछ जानकारी 

भारत का इतिहास वीर योद्धाओं के पराक्रम से भरा पड़ा है इसमे अनेक एसे योद्धा हुए है जिन्होने अपने बलिदान के दम पर भारत का आज वजूद बनाए रखा है। भारत देश की आजादी के लिए अपना जान, माल सर्वस्व न्यौछावर करने वाले असंख्य शहीद शूरवीर और रणबांकुरों की शौर्य गाथाएं इतिहास के पन्नों पर बड़े स्वर्णिम अक्षरों में अंकित हैं, हमारे देश के वीरों ने अपने पराक्रम से एसे इतिहास की रचना की है जिसके पढ़ने ओर सुनने मात्र से हमारे अंदर वीरता का संचार हो जाता है।
ऐसे ही एक अनूठे शूरवीर और पराक्रमी देशभक्त थे राजा नाहर सिंह, ये राजा थे बल्लभगढ़ रियासत के राजा नाहर सिंह। राजा नाहर सिंह एक वीर पराक्रमी पुरुष थे इनकी वीरता, रणकौशलता और वतनपरस्ती ने अंग्रेजों को हिलाकर रख दिया था। सन् 1857 के समय पहली क्रांति में अपना योगदान देने वाले महान क्रांतिकारी राजा नाहर सिंह का जन्म 6 अप्रैल , 1823 को बल्लभगढ़ रियासत में हुआ था। यह रियासत दिल्ली के पास कुछ ही दूरी मे दक्षिण में पड़ती थी। इनके पूर्वज अपनी वीरता के कारण मशहूर थे, राजा नाहर सिंह के खून में वीरता उनके पुरखो से मिली थी जिस कारण उनमे अपने पूर्वजो के समान ही वीरता, पराक्रम, युधकोशलता एवं अपनी देश भक्ति के कारण जाने जाते थे, इनके अंदर देश भक्ति की भावना कूट कूट कर भरी हुई थी ।राजा नाहर सिंह के पूर्वजो ने अब्दाली की सेना के साथ भी सीधी लड़ाई लड़ी थी। राजा नाहर सिंह के अंदर वीरता विरासत में मिली थी जिस कारण ये बचपन से ही वीर थे तथा अल्प आयु में इनके ऊपर अनेक जिम्मेदारियाँ आ गई थी, तथा इन्होने इन सभी जिम्मेदारियों का निर्वाहन किया था। उस समय की परंपरा के अनुसार राजा नाहर सिंह जी की शादी भी लगभग 16 साल की उम्र में हो गया था, इनका विवाह कपूरथला जाट रियासत की राजकुमारी किशन कौर के साथ हुआ था। इनकी शादी के बाद सिर्फ 2 वर्ष के बाद ही इनके पिताजी का निधन हो गया, जिसके उपरांत 18 वर्ष की आयु में राज्य की सारी जिम्मेदारियाँ अपने कंधो पर आ गई थी इस कारण सन 1839 ईस्वी में 20 जनवरी के दिन बल्लभगढ़ रियासत के राजा के रूप में नाहर सिंह का राज्याभिषेक कर दिया गया था, उस समय बल्लभगढ़ रियासत एक सम्पन्न रियासत थी, राजा नाहर सिंह ने जिम्मेदारियां अल्प आयु में अपने कंधो पर ले ली।


राजा नाहर सिंह जी बल्लभगढ़ रियासत के राजा बनने के साथ ही अपनी सैन्य शक्ति को बढ़ाने का कदम शुरू किया तथा अपनी सेना को सुसंगठित किया। राजपूत संघ की जातियों की रियासत जो मुग़लो से प्राप्त हुई थी पहले मुग़लो की गुलामी और अपनी माँ बहन बेटी की इज्जत मुग़लो को बेचने के बाद अंग्रेज़ो को भी बेचना शुरू कर दिया।

 अँग्रेजी हुकूमत के खिलाफ नाहर सिंह ने आवाज उठाने का प्रयास किया तथा अंग्रेज़ो का विरोध करना शुरू कर दिया इसके बाद उन्होंने अंग्रेजों को किसी भी प्रकार का टैक्स न देने और बल्लगढ़ रियासत में अंग्रेजों के न घूसने का फरमान सुना दिया। जिस कारण इस राजा के विद्रोह को देखते हुए अंग्रेज़ सरकार को राजा नाहर सिंह एक खतरा नजर आने लगा जिसके कारण राजा नाहर सिंह अंग्रेजी सरकार की आँखों में खड़कना शुरू हो गए थे।

राजा नाहर सिंह अपनी वीरता के कारण जगह जगह उनकी वीरता के किस्से प्रचलित हो गए, राजा नाहर सिंह की वीरता और पराक्रम की कहानियां देशभर में गूंजनें लगीं। राजा नाहर सिंह ने एक घुड़सवारों की अत्यन्त कुशल और मजबूत जाट सेना तैयार की और पलवल से लेकर दिल्ली तक गश्त करवानी शुरू कर दी। ऐसे में उनका अंग्रेजी सरकार से सीधा टकराव एकदम सुनिश्चित था। राजा नाहर सिंह का अनेक बार अँग्रेजी हुकूमतों से सीधी टक्कर हुई थी जिसमे अहम मोर्चो पर राजा नाहर सिंह जी विजय हुए कई मुक़ाबले तो एसे हुए जिनमे अँग्रेजी सेना का नेतृत्व करने वाले अधिकारियों को अपनी जान बचाकर भागना पड़ा था। अंग्रेज बिग्रेडियर शावर्स को हर बार हार का सामना करना पड़ा। यहाँ तक कि अंग्रेज कलेक्टर विलियम को अपनी जान बचाकर भागना पड़ा। राजा नाहर सिंह 1857 के स्वंतंत्रता संग्राम में कूद पड़े और अंग्रेजों के विरूद्ध एकदम सक्रिय हो गए।

जब 1857 कि क्रांति के लिए नेतृत्व की मांग की जाने लगी तो सबसे आगे उन्ही का नाम था परन्तु मुस्लिम क्रंक्तिकारियो को इस मुहिम में जोड़ने के लिए बहादुर शाह जफर का नाम आगे किया गया। 1857 की क्रांति में सबसे ज्यादा बलिदान जाटो और मुस्लिमो ने दिया लेकिन बिके हुए घटिया मानसिकता के इतिहासकारो ने , सारा क्रेडिट दुसरो को बांट दिया और असली क्रांतिकारी आज भी गुमनाम रह गए। वे देश के एकमात्र ऐसे राजा थे जिनकी रियासत सुरक्षित होने के बावजूद 1857 की क्रांति में भाग लिया था। क्रांतिकारियों की मीटिंग में 1857 की क्रांति की दिनांक फिक्स कर दिया गया उन्हें दिल्ली की सुरक्षा का कार्यभार सौंपा गया।
उनकी रियासत क्रांतिकारियों के लिए सबसे बड़ी व सुरक्षित स्थली थी जहां उनके लिए दरवाजे खुले थे क्योंकि उन्होंने अपने राज्य में अंग्रेजो के बिना अनुमति प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया था जो उस समय का बहुत ही साहसिक कदम था।
उन्होंने अपने राज्य में ऐलान कर दिया था कि कोई भी अंग्रेज विरोधी क्रांतिकारी राज्य में आये तो उसका खुले दिल से स्वागत किया जाए उसकी हर सम्भव सहायता की जाए उनको खाने का सामान व अन्य सामान बाजार से बिना पैसे दिया जाए उसका भुगतान राज्य के खजाने से कर दिया जाएगा।उन्होंने पलवल फरीदाबाद गुड़गांव दिल्ली के अंग्रेज अधिकृत क्षेत्रो पर हमला करके अंग्रेजो को मारकर भगा दिया।

राजा नाहर सिंह ने 134 तक दिल्ली को अंग्रेज़ो से सुरक्षित रखा।

दिल्ली को फिर से हासिल करने के लिए अंग्रेजी सरकार ने बहादुरशाह जफर पर हर प्रकार का कड़ा शिकंजा कस दिया और उस पर तख्त छोड़ने के लिए भारी दबाव बना दिया। इन विकट एवं विपरीत परिस्थितियों के बीच बहादुरशाह जफर ने जाट राजा नाहर सिंह को बुलाया और अंग्रेजी सेना का डटकर मुकाबला किया। बहादुरशाह जफर का सन्देश मिलते ही राजा नाहर सिंह तुरंत दिल्ली के लिए चल पड़े। अंग्रेजों ने दिल्ली पर पुनः कब्जा करने के लिए एक अभेद चक्रव्युह रचा।
दिल्ली पर हमला करने से पूर्व परिस्थितियों का बारीकी से अध्ययन करने के उपरांत कर्नल लारेंस ने गवर्नर को एक पत्र भेजा, जिसमें स्पष्ट तौरपर लिखा कि,



‘‘दिल्ली के दक्षिण-पूर्व में राजा नाहर सिंह की बहुत मजबूत मोर्चाबंदी है। हमारी सेनाएं इस दीवार को तब तक नहीं तोड़ सकतीं, जब तक इंग्लैण्ड से कोई सेना न आ जाये।’’ कर्नल लारेंस के इस पत्र की शब्दावली से सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि उस समय अंग्रेजी सरकार राजा नाहर सिंह की सैन्य और रणकौशलता से किस हद तक खौफ खाती थी। कर्नल लारेंस की सलाह को मानते हुए अंग्रेजी सेना ने दिल्ली पर पूर्व की ओर से आक्रमण करने का साहस नहीं जुटाया और कश्मीरी गेट से 13 सितम्बर, 1857 को हमला बोल दिया।

इसी बीच अंग्रेजों ने बड़ी कूटनीतिक चाल चली और उसने पीछे से राजा नाहर सिंह की रियासत बल्लभगढ़ पर भारी हमला कर दिया। अपने राजा की अनुपस्थिति में बल्लभगढ़ रियासत के वीर जाट बड़ी बहादुरी के साथ लड़े और शहादत को प्राप्त हुए। रियासत पर अंग्रेजी सेना के हमले का सन्देश मिलते ही राजा नाहर सिंह वापस दौड़े। अंग्रेजों ने अपने चक्रव्युह में कामयाबी हासिल करते हुए दिल्ली पर पुनः कब्जा कर लिया और बहुत बड़ी साजिश को अंजाम देते हुए बहादुरशाह जफर को बन्दी बना लिया। दिल्ली पर पुनः कब्जा करने और बहादुरशाह जफर को बन्दी बनाने के बाद अंग्रेजी सरकार के हौंसले बुलन्द हो गए। लेकिन, शूरवीर एवं पराक्रमी राजा नाहर सिंह ने हार नहीं मानी। उन्होंने बल्लभगढ़ रियासत पहुँचने के बाद नए सिरे से अंग्रेजी सेना के खिलाफ मोर्चेबन्दी की और बाहर से आई अंग्रेजी सेना से भिड़ गए। बड़ा भयंकर युद्ध हुआ। दोनों तरफ से लाशों के ढे़र लग गए और खून की धाराएं बह निकलीं। इस मुकाबले में अंग्रेजी सेना को भारी हानि उठानी पड़ी। असंख्य अंग्रेजी सिपाहियों को बन्दी बना लिया गया। धीरे-धीरे अंग्रेजी सेना के पाँव उखड़ने लगे। जब अंग्रेजों को साफ तौरपर अपनी हार दिखाई पड़ने लगी तो उन्होंने एक और नया चक्रव्युह राजा नाहर सिंह को फंसाने के लिए रचा। अंग्रेजी सेना ने युद्ध रोककर एकाएक सन्धि के प्रतीक सफेद झण्डा लहरा दिया। अंग्रेजों की इस धुर्तता व चक्रव्युह को राजा नाहर सिंह बिल्कुल नहीं समझ पाये और उन्होंने भी युद्ध बन्द कर दिया।

एक सुनियोजित षड़यंत्र रचते हुए  दो प्रतिनिधियों ने राजा नाहर सिंह को जाकर बताया कि दिल्ली से समाचार आया है कि सम्राट बहादुरशाह जफर से अंग्रेजी सरकार बातचीत कर रही है और उनके साथ सन्धि की जा रही है। चूंकि वे सम्राट के प्रमुख विश्वास पात्र और शुभचिन्तक हैं तो उन्हें सम्राट ने याद किया। इसीलिए युद्ध बन्द किया गया है और सन्धि के लिए सफेद झण्डा लहराया गया षड़यंत्र से अनजान राजा नाहर सिंह अपने सौ विश्वस्त लड़ाकों के साथ दिल्ली कूच कर गये। अंग्रेजों ने बड़ी संख्या में अंग्रेजी सैनिकों को घात लगाकर राजा नाहर सिंह को बन्दी बनाने के लिए रास्ते में पहले से ही छिपा दिए थे। जब राजा नाहर सिंह उस रास्ते से गुजरने लगे तो अंग्रेजी सैनिकों ने एकाएक घात लगाकर हमला बोल दिया और वीर पराक्रमी शेर राजा नाहर सिंह को धोखे से कैद कर लिया। इसके अगले ही दिन अंग्रेजों ने भारी फौजी के साथ राजा नाहर सिंह की रियासत बल्लभगढ़ पर हमला बोल दिया। एक बार फिर अपने राजा की अनुपस्थिति में रियासत के शूरवीर रणबांकुरों ने अंग्रेजी सेना का डटकर मुकाबला किया। तीन दिन तक चले भीषण संग्राम के बाद रियासत के शूरवीर सैनिक बड़ी संख्या में शहादत को प्राप्त हो गये और रियासत अंग्रेजों के कब्जे में आ गई।

दिल्ली में बन्दी बनाए गए राजा नाहर सिंह के सामने अंग्रेजी मेजर हड़सन पहुँचे और उन्हें अंग्रेजों से मित्रता करने एवं माफी माँगने का प्रस्ताव सुनाया। उन्होंने यह प्रस्ताव रखते हुए राजा नाहर सिंह से कहा कि ‘‘नाहर सिंह ! मैं आपको फांसी से बचाने के लिए कह रहा हूँ। आप थोड़ा सा झुक जाओ।’’ स्वाभिमान और वतरपरस्ती के जज्बों से भरे राजा नाहर सिंह ने यह प्रस्ताव सुनकर हड़सन की तरफ पीठ फेर ली और दो टूक जवाब दिया, ‘‘राजा नाहर सिंह वो राजा नहीं है, जो अपने देश के शत्रुओं के आगे झुक जाए। जाट प्राण समर्पण करते हुए आत्म समपर्ण नही।ब्रिटिश लोग मेरे देश के शत्रु हैं। मैं उनसे क्षमा नहीं माँग सकता। एक नाहर सिंह न रहा तो क्या? कल लाखों नाहर सिंह पैदा हो जाएंगे।’’ मेजर हड़सन को राजा नाहर सिंह से ऐसे करारे जवाब की जरा भी उम्मीद नहीं थी। वह एकदम बौखला उठा। अंग्रेजी सरकार ने राजा नाहर सिंह को फांसी पर लटकाने का निश्चय कर लिया।

अंग्रेजों ने हिन्दूस्तानियों में भय बैठाने और क्रांतिकारियों में खौफ पैदा करने के उद्देश्य से राजा नाहर सिंह और उनके तीन साथियों को 9 जनवरी, 1858 को दिल्ली के चाँदनी चौक पर सरेआम फांसी पर लटकाने का निर्णय ले लिया। हड़सन ने फांसी पर लटकाने से पहले राजा नाहर सिंह से उनकीं आखिरी इच्छा के बारे में पूछा तो भारत माता के इस शेर ने दहाड़ते हुए कहा था, ‘‘मैं तुमसे और ब्रिटानी राज्य से कुछ माँगकर अपना स्वाभिमान नहीं खोना चाहता हूँ। मैं तो अपने सामने खड़े हुए अपने देशवासियों से कह रहा हूँ कि क्रांति की इस चिंगारी को बुझने न देना।’’ शौर्य, स्वाभिमान और वतनपरस्ती की प्रतिमूर्ति राजा नाहर सिंह के ये अंतिम शब्द हड़सन सहित अंग्रेजी सरकार के नुमाइन्दों के कानों में पिंघले हुए शीशे के समान उतर गए। अंततः भारत माता के इस सच्चे व अजेय लाल को उनके लोगों के सामने ही फांसी के फंदे पर लटका दिया और उनके साथ ही अन्य महान जाट क्रान्तिकारियों ने भी अपनी भारत माँ की आजादी के लिए हंसते-हंसते अपने प्राणों का बलिदान दे दिया। हर किसी ने उनकीं वीरता, साहस और देशभक्ति के जज्बे को दिल से सलाम किया। आजादी के ऐसे दिवानों और बलिदानियों का यह राष्ट्र हमेशा कृतज्ञ रहेगा। उन्हें हृदय की गहराईयों से कोटि-कोटि नमन।

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